Wednesday, April 21, 2010

आप सब मे कइयों के मन मे ये सवाल आ रहा होगा कि क्या फ़र्क पड़ता है देश का नाम भारत हो या इंडिया? या जहाँ हम इतनी तरक्की कर रहे हैं वहाँ इस संकीर्ण सोच के लिए स्थान ही कहाँ है? या ये ज़रूर किसी कट्टर पंथी या राजनीतिक संघ से होंगे जो आज ऐसी बातें कर रहे हैं? ….. इत्यादि |

तो हम आपको पहले तो अपने बारे मे बता दें कि ना ही हम किसी कट्टर पंथी संघ से जुड़े हैं और ना ही हम किसी राजनीतिक दल के हैं | हम आप मे से ही हैं, हम भारतीय हैं जो इस बात को नही कह पाए उनकी ज़ुबान हैं हम, हम इस देश के युवा हैं | हम भारत हैं और कोई नही | हम क्यो ये जागरूकता फैला रहे हैं और हम क्यो ऐसा सोचते हैं या हम क्यो ये चाह रहे हैं, इन सभी सवालो के जवाब नीचे निम्नलिखित रूप मे दिए गए हैं |

1.    आप कहेंगे कि लगभग सभी देशो के नाम दो हैं; उनकी भाषा मे अलग और अँग्रेज़ी मे अलग, तो इस बात का जवाब है कि हम हर चीज़ मे दूसरे देशों से अपनी तुलना क्यों करें, हमारे पास जब सब कुछ सर्वोपरी है | पर फिर भी गर आप हमारी बात से सहमत ना हो तो आप को ये भी जानना चाहिए की कई देश ऐसे और भी हैं जिनका नाम एक ही है और वो भी उन्ही की भाषा मे, उदाहरण के तौर पर पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, बांग्लादेश इत्यादि |

2.    इंडिया नाम हमे गुलामी की याद तक ले जाता है | कहीं हमे वही याद दी गई है जो जाने वाले चाहते थे कि हम याद रखें | हमारा अपना तो हम भूल ही गए हैं | गर ताज ही भीख मे दिया गया हो तो क्या राजा और क्या उसकी शान? उदाहरण के लिए – आप अमेरिका को ही ले लीजिए | अंग्रेज़ो से आज़ादी पाने के बाद उन्होने उनकी कोई याद नही रखी | जैसे की गाड़ी चलाने का चलन उन्होने बाईं तरफ से ना करके दाई तरफ से किया | बिजली के बटन उपर को दबाए जाने पर चालू होते हैं | कहने को तो वो सब कुछ पहले जैसा रख सकते थे जैसा अंग्रज़ो ने रखा था पर उन्हे हर चीज़ से उपर अपना स्वाभिमान लगा जिसे बनाए रखने के लिए उन्होने ये कदम उठाए | उम्मीद है आप समझ रहे हैं कि यह अपने आत्म-सम्मान का सवाल है |

3.    ये हमारे अमर शहीदो को सलामी भी है | आज़ादी से पहले जब भी देश के भले के लिए आवाज़ उठी वो भारत थी | नारे “भारत छोड़ो ” के थे ना कि “इंडिया छोड़ो” के | हमारे शहीदों ने अपने  खून को पानी की तरह बहाके अपना सब कुछ गँवाके हमे आज़ाद भारत मे साँस लेने का स्वर्ण अवसर दिया | हमे बिना किसी प्रयास ये सब मिल गया पर हम नासमझों ने उसकी महानता को नही समझा | जिस भारत माँ के लिए वो लड़े उसका नाम भाषाओं मे ही बँट के रह गया |

4.    क्या हमारा नाम भाषाओं के साथ बदलता रहता है? क्या ‘पूजा’ नाम अँग्रेज़ी मे ‘वर्षिप’ हो जाएगा, नही ना | तो फिर हमारे देश का क्यो? हमारा नाम तो वही रहता है चाहे हम किसी भी देश चले जाएँ या किसी भी भाषा मे कहें | जब हमारा नाम नही बदलता तो ये तो हमारे देश का नाम है | गर हम देश की पहचान हैं तो देश भी हमारी पहचान है | क्या हमारे देश का नाम हमारे खुद के नामों से भी कम गौरवपूर्ण है? ज़रा सोच के देखिए इस बात को |

5.    और बात सिर्फ़ देश के नाम की नही है | बात है हमारी पहचान की | आज जब पूरी दुनिया ज्ञान के लिए भारत की तरफ देख रही है जहाँ भारत फिर से सबसे आगे निकलने को तैयार है वहीं क्या हम अपने देश को उसके नाम से सम्मानित करने का दम भी नही रखते क्या?

6.    यहाँ ये भी सवाल होगा आपके मन मे कि अगर नाम हिन्दी मे ही रखना है तो भारत ही क्यों कह रहे हैं हम, हिन्दुस्तान भी तो हो सकता है | तो आपके जवाब मे हम ये कहना चाहते हैं कि हिन्दुस्तान नाम कैसे पड़ा (ज़्यादा जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें) वो भी सब जानते ही हैं | हम आपको ये बताना चाहते हैं की ये नाम सरकार भी नियुक्त कर सकती थी पर सिर्फ़ इसलिए नही किया गया क्योंकि हिन्दुस्तान कहीं ना कहीं हिन्दुओ को ज़्यादा तवज़ुब देता है | भारत किसी धर्म विशेष को नही सहार्ता है और ये हमारा सबसे पुराना और असल नाम है (आप देख सकते हैं कि हमारा महान ग्रंथ “महाभारत” भी भारत नाम से ही है) | भारत हर एक भारतीय की इज़्ज़त है फिर चाहे वो मुसलमान/हिंदू/सिख/ईसाई/पारसी या किसी भी धर्म का अनुसरण करने वाला हो |

7.    वैसे एक और नकारात्मक सोच दिमाग़ से निकाल दीजिएगा की हम कोई देश का विभाजन करने वाली प्रतिक्रिया कर रहे हैं | ये विभाजन नही बल्कि पूरे देश को एक बार फिर एक नाम से जोड़ने की कोशिश है जिसमे सिर्फ़ भारत और भारतवासियों का प्यार झलकेगा, किसी बाहर वाले की दी हुई टीस नही |

वैसे ग़लती किसी की नही है जब हमारे संविधान मे ही ये बेहद अच्छे से नज़र आता है तो आम इंसान क्या कर सकता है | जब हमारे संविधान मे संस्कृति और शिक्षा संबंद्धी अधिकार मे अनुच्छेद 29 (1) मे कहा गया है कि “भारत के राज्य क्षेत्र अथवा किसी भाग के निवासी, नागरिकों के किसी विभाग को जिस की अपनी भाषा, लिपि या संस्कृति है, उसे बनाए रखने का अधिकार होगा” |

जब यहाँ हमे अधिकार है तो फिर ये तो राज्य नही देश की बात है | हमारी भाषा संस्कृत का स्वाल है | संस्कृत को सर्वश्रेष्ट माना गया है | भारत नाम उसी से निकला है तो हमे तो गर्व होना चाहिए उस भाषा मे अपने देश का नाम लेने मे | हम क्यो उपर से नीचे की ओर जा रहे हैं और अभी भी गिरते ही जा रहे हैं |

हमारी सोच को संविधान के स्तर से ही कमज़ोर बना दिया गया है क्योकि वहीं से पहली प्राथमिकता नही मिली हमारी भाषा को | पर ये सविधान भी किस के लिए है? हमारे ही लिए है ना ? तो हम चाहते हैं की हमारी भाषा को प्राथमिकता मिले और उसका पहला कदम है कि हमारे देश का नाम हर भाषा मे भारत  ही जाना जाए |

संस्कृत मे भारत शब्द दो शब्दो के मेल से बना है : 'भा' और 'रत' | 'भा' मतलब 'प्रकाशमान होना' एवं 'रत' मतलब 'लीन रहना' | भारत शब्द का अर्थ हुआ 'अध्यात्मिक ज्ञान से प्रकाशमान होना और उसमे लीन रहना' | कही ना कही यह उस युग को दर्शाता है जब भारत मे ऋषि मुनि, पीर फ़क़ीर  सर्व युग को श्रेष्ठ मार्ग पर चलने की शिक्षा दिया करते थे और इसीलिए हमारी संस्कृति को सर्वश्रेष्ठ संस्कृति माना जाता रहा है |

भारत मे रहने वाला हर एक शख़्स भारतीय है | हम सब चाहे किसी भी राज्य/जात/प्रांत/भाषा/धर्म के हो पर हम सब मे एक समानता है और वो ये कि हम भारतीय हैं और हम सबका ये फ़र्ज़ बनता है कि हम अपने देश का स्वाभिमान बरकरार रखें | हमारे देश का स्वाभिमान है तो हम हैं और हम हैं तो देश है | हम दोनो की पहचान एक दूजे के बिना अधूरी है |

श्री ख़ुशवंत सिंग जी के द्वारा लिखी गई किताब “मेरा भारत” मे उन्होने  कहा है "यद्यपि अँग्रेज़ों ने भारत को अच्छा प्रशासन दिया किंतु भारतीय खजाने पर बोझ की कीमत पर” | ये बात यहाँ व्याख्यान करने की ज़रूरत नही थी | ये बात सभी भारतीय अच्छे से जानते हैं पर ये उनके लिए है जो आज भी ये मानते है की जो हम इतिहास किताबों मे पढ़ते हैं वही सच है, जो ये मानते हैं की भारतीयों मे सच मे तहज़ीब नही थी और वो उन्हे अंग्रेज़ो ने सिखाई है |

भारत से बाहर भारतीय शीला-लेख विद्या आप जो भी पाएँगे वो लगभग सारी संस्कृत मे ही है | (दी वंडर ऑफ संस्कृत, लेखक संपत एंड विजय, प्रकाशक श्री ओरबींदो सोसाइटी, पृष्ठ 157)

वी वी इवानोव नमक एक रूसी बहुभाषी ने कहा है 'भारत की धारणा संस्कृत के बिना की ही नही जा सकती क्योकि इसने भारतीय संस्कृति की एकता को सहअस्त्राब्दियो से बना के रखा हुआ है | वास्तव मे भारत की आत्मा संस्कृत से ही है | संस्कृत भारत की एक आम राष्ट्रीय विरासत है जिसे बनाए रखने मे उत्तर से लेकर दक्षिण तक, पूर्व से लेकर पश्चिम तक समूचे भारत का योगदान है |

जब पूरे मुल्क़ को जोड़े रखा है संस्कृत ने तो क्या इससे निकला हुआ नाम हमारे लिए सर्वोपरि नही होना चाहिए?  वैसे बताने की ज़रूरत नही कि संस्कृत का क्या स्थान है सब भाषाओं मे, तो जब हमारे देश का नाम सर्वोत्तम भाषा के गर्भ से ही निकला है तो हम क्यो नही उसे शान से सब जगह प्रस्तुत करते हैं?

आपको शायद ये भी लग रहा हो यहाँ कि हम भारत पर ज़ोर ना देते हुए संस्कृत पे ज़्यादा ज़ोर दे रहे हैं पर प्यारे भारतीयों ये सब हम सिर्फ़ इसलिए बता रहे हैं कि आप संस्कृत की एहमियत तो काफ़ी हद तक जानते ही हैं, गर नही तो ये पढ़ के जान ही जाएँगे और फिर जो शब्द “भारत” संस्कृत से ही निकला है, उसकी एहमियत को और गहराई से समझ पाएँगे |  

हम हमेशा शिकायत करते हैं भारत मे ये ग़लत है वो ग़लत है पर कुछ करते नही हैं या कह लीजिए कर नही पाते | पर इस बार देखिए हमारे पास सच मे कुछ है अपने देश के लिए करने को |


ये एक महत्वपूर्ण कदम है हर भारतीय का हर भारतीय के लिए |


मौका है सच मे शहीदो को एक पुख़्ता/सही मायनो मे सलामी देने का |


“मेरे करने से क्या होगा?” - वक़्त है ये सोच बदलने का | यहाँ हर एक भारतीय का मत गिना जाएगा | हर भारतीय का मत उतना ही महत्वपूर्ण है इस कार्य मे जितना कि एक शरीर मे साँस का महत्व |


मौका है आज़ादी सच मे मनाने का |


मोका है भारत और भारतीय होने का गौरव सच मे पाने का |


अंत मे हमारा आपसे निवेदन है कि हमारा सहयोग दें इस लक्ष्य को प्राप्त करने मे क्योकि बिना आप सब के सहयोग के हम कुछ नही हैं | आप भारत के चाहे जिस भी कोने मे हैं या भारत के बाहर हैं, आप चाहे किसी भी समुदाय किसी भी धर्म से हैं, गर आपको हमारी बातों मे सच्चाई लगती है तो हमे सहयोग दें इस जागरूकता को आगे बढ़ाने मे |


अगर आपका कोई भी सवाल है या सुझाव है तो कृपया करके हमे नि:संकोच बताएँ | आपके हर विचार का यहाँ खुले दिल से स्वागत है | अभी हम भी मंझे हुए नही हैं पर हमारे कदम ग़लत नही हैं ये हम जानते हैं |


किसी ने शायद ये हमारे लिए ही कहा है कि - “हम तो मुश्त-ओ-ख़ाक भी नही लेकिन किसी हवा के रहमोकरम पर भी नही जीते”

AUTHOR: Dr. Pooja Rana

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